ओशो से किसी ने पूछा -
“राजनीतिक लुच्चे-लफंगों से देश को छुटकारा कब मिलेगा?”
ओशो ने कहा – “बहुत कठिन है। क्योंकि प्रश्न राजनेताओं से छुटकारे का नही है, प्रश्न तो तुम्हारे अज्ञान के मिटने का है ? तुम जब तक अज्ञानी हो, कोई न कोई तुम्हारा शोषण करता ही रहेगा, कोई न कोई तुम्हे चूसेगा ही !-
पंडित चूसेंगे , पुरोहित चूसेंगे , मुल्ला-मौलवी चूसेंगे , राजनेता चूसेंगे तुम जब तक जाग्रत नही हो, तब तक लुटोगे ही ? फिर किसने लूटा, क्या फर्क पड़ता है ? किस झण्डे की आड़ में लुटे, क्या फर्क पड़ता है ? समाजवादियों से लुटे कि साम्यवादियों से, क्या फर्क पड़ता है ? तुम तो लूटोगे ही ! लूटेरों के नाम बदलते रहेंगे और तुम लुटते रहोगे !
‘इसलिए ये मत पूछो कि राजनैतिक लुच्चे-लफंगों से देश का छुटकारा कब होगा? यह प्रश्न ही अर्थहीन है ? ये पूछो कि मै कब इतना जाग सकूँगा कि झूठ को झूठ की तरह पहचान सकूँ ? और जब तक सारी मनुष्य- जाती झूठ को झूठ की भाँति नही पहचानती, तब तक छुटकारे का कोई उपाय नहीं है।